sandeep kumar verma
भारतीय दर्शनशास्त्र Philosia और पश्चिमी मनोविज्ञान Philosophy में अंतर.

Logo designed by Monish Choudhary
My conclusion : In Philosia, ie Indian Philosophy, experimental Philosia is not possible, only who has seen the truth, like Osho, in a flash can suggest particular instructions for a person looking at his spiritual status or spiritual aura. Osho’s whole life was devoted towards it. Any Data Analysis etc are of help only in Western Philosophy.
Hi, I’m reading this book
( First chapter of I am that -by Osho English version)
, and wanted to share this quote with you. Read on the go for free – download Kindle for Android, iOS, PC, Mac and more http://amzn.to/1r0LubW
“ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।
ॐ वह पूर्ण है और यह भी पूर्ण है; क्योंकि पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है। तथा पूर्ण का पूर्णत्व लेकर पूर्ण ही बच रहता है। ॐ शांति, शांति, शांति। यह महावाक्य कई अर्थों में अनूठा है। एक तो इस अर्थ में कि ईशावास्य उपनिषद इस महावाक्य पर शुरू भी होता है और पूरा भी। जो भी कहा जाने वाला है, जो भी कहा जा सकता है, वह इस सूत्र में पूरा आ गया है। जो समझ सकते हैं, उनके लिए ईशावास्य आगे पढ़ने की कोई भी जरूरत नहीं है। जो नहीं समझ सकते हैं, शेष पुस्तक उनके लिए ही कही गई है। इसीलिए साधारणतः ॐ शांतिः शांतिः शांतिः का पाठ, जो कि पुस्तक के अंत में होता है, इस पहले वचन के ही अंत में है। जो जानते हैं, उनके हिसाब से बात पूरी हो गई है। जो नहीं जानते हैं, उनके लिए सिर्फ शुरू होती है। इसलिए भी यह महावाक्य बहुत अदभुत है कि पूरब और पश्चिम के सोचने के ढंग का भेद इस महावाक्य से स्पष्ट होता है। दो तरह के तर्क, दो तरह की लाजिक सिस्टम्स विकसित हुई हैं दुनिया में–एक यूनान में, एक भारत में। यूनान में जो तर्क की पद्धति विकसित हुई उससे पश्चिम के सारे विज्ञान का जन्म हुआ और भारत में जो विचार की पद्धति विकसित हुई उससे धर्म का जन्म हुआ। दोनों में कुछ बुनियादी भेद हैं। और सबसे पहला भेद यह है कि पश्चिम में, यूनान ने जो तर्क की पद्धति विकसित की, उसकी समझ है कि निष्कर्ष, कनक्लूजन हमेशा अंत में मिलता है। साधारणतः ठीक मालूम होगी बात। हम खोजेंगे सत्य को, खोज पहले होगी, विधि पहले होगी, प्रक्रिया पहले होगी, निष्कर्ष तो अंत में हाथ आएगा। इसलिए यूनानी चिंतन पहले सोचेगा, खोजेगा, अंत में निष्कर्ष देगा। भारत ठीक उलटा सोचता है। भारत कहता है, जिसे हम खोजने जा रहे हैं, वह सदा से मौजूद है। वह हमारी खोज के बाद में प्रगट नहीं होता, हमारे खोज के पहले भी मौजूद है। जिस सत्य का उदघाटन होगा वह सत्य, हम नहीं थे, तब भी था। हमने जब नहीं खोजा था, तब भी था। हम जब नहीं जानते थे, तब भी उतना ही था, जितना जब हम जान लेंगे, तब होगा। खोज से सत्य सिर्फ हमारे अनुभव में प्रगट होता है। सत्य निर्मित नहीं होता। सत्य हमसे पहले मौजूद है। इसलिए भारतीय तर्कणा पहले निष्कर्ष को बोल देती है फिर प्रक्रिया की बात करती है–दि कनक्लूजन फर्स्ट, देन दि मैथडलाजी एंड दि प्रोसेस। पहले निष्कर्ष, फिर प्रक्रिया। यूनान में पहले प्रक्रिया, फिर खोज, फिर निष्कर्ष।”
“इससे एक बात और खयाल में ले लेनी चाहिए। जो लोग सोच-विचार करके सत्य को पाएंगे, उनके लिए यूनान की तर्क-पद्धति ठीक मालूम पड़ेगी। सोचना-विचारना ऐसे है जैसे मैं एक छोटे से दीए को लेकर महा अंधकार से घिरी हुई रात्रि में कुछ खोजने को निकलूं। रात है बड़ी, अंधेरा है बहुत, दीए की रोशनी बहुत कम, दो-चार कदमों तक पड़ती है। कुछ दिखाई पड़ता है, बहुत कुछ अनदिखा रह जाता है। जो दिखाई पड़ता है, उसके बाबत जो भी निष्कर्ष लिए जाते हैं, वे टेन्टेटिव, अस्थायी होंगे। क्योंकि थोड़ी देर बाद कुछ और भी दिखाई पड़ेगा, जिसके दिखाई पड़ने के बाद निष्कर्ष को बदलना जरूरी होगा। फिर थोड़ी देर बाद कुछ और दिखाई पड़ेगा, और निष्कर्ष को पुनः बदलना जरूरी होगा। इसलिए पश्चिम का विज्ञान, चूंकि यूनान के तर्क को मानकर चलता है, उसका कोई भी निष्कर्ष अंतिम नहीं हो सकता। उसके सभी निष्कर्ष अस्थायी, कामचलाऊ, अभी जितना जानते हैं उस पर आधारित हैं। कल जो जाना जाएगा उससे बदलाहट हो जाएगी। इसलिए पश्चिम का कोई भी सत्य निरपेक्ष, एब्सोल्यूट नहीं है, पूर्ण नहीं है। सभी सत्य अपूर्ण हैं। और यह बड़े मजे की बात है कि सत्य अपूर्ण हो नहीं सकता। जो भी अपूर्ण होगा वह असत्य ही होगा। और जिसे हमें कल बदलना पड़ेगा वह आज भी सत्य नहीं था, सिर्फ मालूम पड़ता था। जिसे हमें कभी भी नहीं बदलना पड़ेगा वही सत्य हो सकता है। इसलिए पश्चिम में जिसे वे सत्य कहते हैं, वह केवल आज जितना हम जानते हैं उस जानने पर निर्भर असत्य है, जो कि कल के जानने से रूपांतरित होगा, परिवर्तित होगा। भारत की पद्धति सत्य को दीया लेकर खोजने की नहीं है। भारत की पद्धति ऐसी है जैसे अंधेरी रात हो, गहन अंधकार हो और बिजली कौंध जाए। बिजली कौंधे और सभी कुछ एक साथ, साइमलटेनियसली दिखाई पड़ जाए। थोड़ा पहले दिखाई पड़े, थोड़ा बाद में दिखाई पड़े, फिर थोड़ा बाद में दिखाई पड़े, ऐसा नहीं है–रिविलेशन हो जाए, सब एकदम से उघड़ जाए। सब रास्ते–दूर क्षितिज तक फैले हुए–सभी कुछ जो है, बिजली की कौंध में इकट्ठा दिखाई पड़ जाए। फिर उसमें बदलने का कोई उपाय न रह जाए, पूरा ही जान लिया गया। यूनान में जिसे वे तर्क कहते हैं, वह विचार के द्वारा सत्य की खोज है। भारत में हम जिसे अनुभूति कहते हैं, प्रज्ञा कहते हैं–कहें पश्चिम में जिसे हम लाजिक कहते हैं और पूरब में जिसे इंट्यूशन कहते हैं–यह प्रज्ञा बिजली की कौंध की तरह सारी चीजों को एक साथ प्रगट कर जाने वाली है। इसलिए सत्य पूरा का पूरा जैसा है वैसा ही प्रतिफलित होता है। फिर उसमें कुछ परिवर्तन करने का उपाय नहीं रह जाता।”
“इसलिए महावीर ने जो कहा है, उसमें बदलने की कोई जगह नहीं है। कृष्ण ने जो कहा है, उसमें बदलने की कोई जगह नहीं है। बुद्ध ने जो कहा है, उसमें बदलने का कोई उपाय नहीं है। इसलिए कभी-कभी पश्चिम के लोग चिंतित और विचार में पड़ जाते हैं कि महावीर को हुए पच्चीस सौ साल हुए, क्या उनकी बात अभी भी सही है? ठीक है उनका पूछना। क्योंकि पच्चीस सौ साल में अगर दीए से हम सत्य को खोजते हों, तो पच्चीस हजार बार बदलाहट हो जानी चाहिए। रोज नए तथ्य आविष्कृत होंगे और पुराने तथ्य को हमें रूपांतरित करना पड़ेगा। लेकिन महावीर, बुद्ध या कृष्ण के सत्य रिविलेशन हैं। दीया लेकर खोजे गए नहीं–निर्विचार की कौंध, निर्विचार की बिजली की चमक में देखे गए और जाने गए, उघाड़े गए सत्य हैं। जो सत्य महावीर ने जाना उसमें महावीर एक-एक कदम सत्य को नहीं जान रहे हैं, अन्यथा पूर्ण सत्य कभी भी नहीं जाना जा सकेगा। महावीर पूरे के पूरे सत्य को एक साथ जान रहे हैं। इस महावाक्य से मैं यह आपको कहना चाहता हूं कि इस छोटे से दो वचनों के महावाक्य में पूरब की प्रज्ञा ने जो भी खोजा है, वह सभी का सब इकट्ठा मौजूद है। वह पूरा का पूरा मौजूद है। इसलिए भारत में हम निष्कर्ष पहले, कनक्लूजन पहले, प्रक्रिया बाद में। पहले घोषणा कर देते हैं, सत्य क्या है, फिर वह सत्य कैसे जाना जा सकता है, वह सत्य कैसे जाना गया है, वह सत्य कैसे समझाया जा सकता है, उसके विवेचन में पड़ते हैं। यह घोषणा है। जो घोषणा से ही पूरी बात समझ ले, शेष किताब बेमानी है। पूरे उपनिषद में अब और कोई नई बात नहीं कही जाएगी। लेकिन बहुत-बहुत मार्गों से इसी बात को पुनः-पुनः कहा जाएगा। जिनके पास बिजली कौंधने का कोई उपाय नहीं है, जो कि जिद पकड़कर बैठे हैं कि दीए से ही सत्य को खोजेंगे, शेष उपनिषद उनके लिए है। अब दीए को पकड़कर, बाद की पंक्तियों में एक-एक टुकड़े के सत्य की बात की जाएगी। लेकिन पूरी बात इसी सूत्र पर हो जाती है। इसलिए मैंने कहा कि यह सूत्र अनूठा है। सब इसमें पूरा कह दिया गया है।” (from “ईशावास्योपनिषद – Ishavasya Upanishad (Hindi Edition)” by Osho .)
ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है। मैंने इसे ओशो की एक किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा।
यदि आपको यह post पसंद आया है तो इसे अपने साथियों को भी share करें। ताकी जिसको इसकी बहुत ज़रूरत है उस तक यह पहुँच सके। पुण्य का काम है माध्यम बन जाना किसी के भले के लिये।
Awareness meditation is the way worked for me, may be you too find it suitable otherwise Dynamic meditation is for most of the people. There are 110 other meditation techniques discovered by Indian Mystic Gorakhnath about 500years before and further modified by Osho that one can experiment and the suitable one could be practiced in routine life.
Osho International Online (OIO) provides facility to learn these from your home,
1. through Osho Meditation Day @€20.00 per person. OIO rotate times through three timezones NY,Berlin and Mumbai. You can prebook according to the convenient time for you.
2. There is OSHO Evening Meeting streaming which can be accessed every day at local time starting 6:40 pm (of which Osho says that he wants his people to view it all over the world and these days it is possible) and 16 of the meditations mostly with video instructions and so much more on iOSHOthrough App.
3. There is a 7 days Free Trial also for people who would like to first try it out.
This is an opportunity for learning and knowing Osho through these sannyasins who lived in his presence and brought to life his words in best possible quality in all formats.
Disciples of Jesus left him alone in last minutes but Osho’s disciples remained with him till he left his body willingly after working, till last day, for all of us to get enlightened. Jesus tried hard till last minute, before being caught, to teach meditation to his disciples. As per Saint John’s Gospel:- Jesus used word ‘Sit’ to transfer his meditative energy to them and went on to pray God, but on returning he found them sleeping. He tried two times again but in vain.
Even today Zen people use word ‘Sit’ for meditation in their saying ‘Sit silently, do nothing, season comes and the grass grows by itself green’.
Hi ….. I write my comments from my personal experiences of my inner journey. This post may include teachings of Mystics around the world that I found worth following even today. For more about me and to connect with me on social media platforms, have a look at my linktree website for connecting with my social media links, or subscribe my YouTube channel and/or listen to the podcasts etc.
Start reading it for free: https://amzn.in/gBjXbjR
————–
Read on the go for free – download Kindle for Android, iOS, PC, Mac and more http://amzn.to/1r0LubW
#synchronicity #Mysticism #Totality #Ishavasya #Ishavasyopnishad #Oneness #Wholeness #Philosia #Ishawasyopnishad #Relaity #Ishawasya