sandeep kumar verma
द्रोपदि का आधुनिक चीरहरण
यहाँ यह बताना उचित होगा कि इस post के पहले ‘हर शरीर में घट रही है रामायण और महाभारत’ post को पढ़ें. ताकि मैं यहाँ कृष्ण, पांडव एवं द्रौपदी कहकर जिसकी ओर इशारा कर रहा हूँ वे जाने जा सकें। यहाँ कृष्ण बांसुरी लिए, मोर पंख वाले कृष्ण नहीं हैं बल्कि कालातीत सदा रहने वाला अंधियारा है जिसका अनुभव तभी होता है जब निर्वाण पर दिया -जो enlightenment पर जला था- वह बुझता है। और ऐसा ही सारे पात्र महाभारत के इस शरीर के भीतर ही मौजूद हैं।
यदि मुझसे कहा जाए कि महाभारत के इस प्रकरण की व्याख्या उपरोक्त महाभारत और कृष्ण के संदर्भ में की जाए तो मैं उसमें यह बदलाव करना चाहूँगा।
मनुष्य शरीर में पाँच शरीर है चाहे स्त्री हो या पुरुष। उसकी एक ही सहचरी है वह शक्ति स्वरूपा काली कहो, जगदंबा कहो। वही द्रोपदिके रूप में पांडवों की स्त्री के रूप में हर शरीर में स्थित है।