अंधेरी रात, तूफ़ाने तलातुम, नाख़ुदा गाफ़िल।
Photo by Kammeran Gonzalez-Keola on Pexels.com अंधेरी रात, तूफ़ाने तलातुम, नाख़ुदा गाफ़िल। यह आलम है तो फिर इस किश्ती सरे मौजें रवाँ कब तक? अच्छा यक़ीन नहीं है, तो कश्ती डूबा के देख। एक तू ही नाख़ुदा नहीं है ज़ालिम, ख़ुदा भी है॥ ओशो talks मेरे जीवन यात्रा पर ये दो लाइनें बिलकुल सटीक बैठती हैं। और मैं कहूँ कि हम सभी के जीवन पर भी यह सटीक बैठती है तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये। संसार की नाव में यात्रा तो सुरक्षित है क्योंकि नाव इस किनारे से बंधी है। लेकिन ज़्यादा से ज़्यादा न